नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-17

कदंभ मुझे आश्चर्य इस बात पर हो रहा है। इतनी शक्तियों को प्राप्त करने के बाद और मां की विशेष कृपा होते हुए भी तुम्हारे कदम आखिर आज इतनी चिंता में क्यों पड़ रहे हैं??क्या इसका कारण बता सकते हो ?? और फिर मैंने तो यहां तक सुना है कि एक समय मां दोतलि के प्रिय रह चुके तुमने काफी समय उनकी सेवा और आज्ञा में प्रत्यक्ष रूप से गुजारा है।

मां ने तुम्हें अत्यंत गूढ़ विद्याये जो शायद ही ब्रह्मांड में किसी के पास हो, सिखाई..... उन्हें भी तुम्हें प्रदान किया है। मां देव, जया, दोतलि, विषहर, शामिलबाटी... इन सबसे कहीं ना कहीं तुम्हें सम्मान इनसे प्राप्त है ! और उनकी कृपा से तुम्हें इच्छाधारी होने के साथ ऐसी अचूक शक्तियां प्राप्त है। जिसके कारण कि इस आकाशगंगा के किसी भी कोने में, या यूं कहूं संपूर्ण ब्रह्मांड में किसी भी समय कहीं भी आने-जाने की शक्ति और प्रकाश से भी तेज गति तुम्हें प्राप्त है। तब भी आज पंच द्वारों के द्वारा के दर्शन में इतना संशय क्यों??

इसका कारण मेरी समझ में नहीं आता??आज तुम्हारे कदम एक सामान्य अश्व की गति से भी कम उठने का कारण मेरी समझ से परे है। जबकि तुम जानते हो कि संध्या के पश्चात उस मंदिर में मनुष्य की आवाजाही का स्पष्ट प्रतिबंध है। क्या तुम नहीं चाहते कि हम जल्द से जल्द पहुंच अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लौट आए??

लक्षणा की बातें सुन कदंभ मानव रूप धारण कर प्रत्यक्ष रूप से उसके सामने आकर प्रकट हुआ। वह लक्षणा की जिज्ञासा को शांत करने हेतु कहने लगा। लक्षणा जिन पंच द्वारो कि तुम बात कर रही हो। वे वास्तव में कोई सामान्य द्वार नहीं, जिन्हें यूं ही खोला या बंद किया जा सकता है,,, और हां जैसा कि तुम कह रही हो कि तुम लक्षणा और मैं कदंभ इस सृष्टि के एकमात्र ऐसे प्राणी है। जिन पर विशेष कृपा है तो यह तुम्हारी भूल है। तुम्हें नहीं पता कि इस ब्रम्हांड में ऐसी कितनी ही आकाशगंगा और ना जाने कितनी ही पृथ्वी होगी और सबका अपना अपना अलग-अलग महत्व है।

लक्षणा हमारी स्थिति सच कहूं तो उस पत्थर की तरह है। जो यदि हथेली पर रखा हो तो बड़ा नजर आता है। लेकिन टेबल पर रखने पर छोटा। मैदान में और छोटा और जब आकाश की ऊंचाइयों से देखा जाए तो वह नजर ही ना आए, ठीक उसी तरह है।

लेकिन यह हमारा सौभाग्य है कि हमें किसी रत्न की तरह ईश्वरी शक्तियों ने अपने अंगूठी में सजा रखा है, इसलिए हमें उन्हीं के आभामंडल की शक्ति से गर्व होता है उनका सान्निध्य प्राप्त कर......... लेकिन लक्षणा ऐसे हम सिर्फ एक ही नहीं अनेकों कदंभ और अनेकों लक्षणा इस ब्रह्मांड में उपस्थित है । जिसके लिए अलग अलग परिस्थितियां और अलग अलग समय नियोजित है। वे भी नागपत्री को उसी तरह स्पर्श कर पाएंगे। जिस तरह तुम्हारी नियति में लिखा है और उन्हें भी उतनी ही कृपा प्राप्त होगी जितना कि मुझे और तुम्हें......

लक्षणा यह मत सोचो कि माताओं की लिखी हुई नागपत्री जिसमें स्वयं शंभू महादेव से प्राप्त जीवंत मंत्रों का समावेश हैं। ईट वे किसी से भी कोई भेदभाव करेंगे। रही बात मेरी गति की तो एक बार फिर भी पुनः स्मरण करा देता हूं। यदि मैं पूर्ण वेग भी चलू तब भी जब तक उस पराशक्ति की इच्छा ना हो, मैं उन तक नहीं पहुंच सकता। लेकिन यदि उनका एक इशारा प्राप्त हो जाए। तब हमारी एक पलक झपकते ही हमारा उठने वाला अगला कदम उनके समक्ष होगा।

लक्षणा इस महिमा को तो जानती हो ना तुम। समय चक्र सिर्फ सामान्य स्थिति पर काम करता है। यहां शक्तियां संचारित होती है। वहां समय की बाध्यता और उकदंभसका प्रभाव समाप्त हो जाता है। क्या इसके पहले तुमने कभी किसी पल भर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर गुरुवर को आते जाते नहीं देखा?? क्या पहले ही दृष्टि में मैंने तुम्हें एक पलक के साथ संपूर्ण ब्रह्मांड का भ्रमण नहीं कराया??ऐसा हुआ ना तो यह जान लो कि वह सब ईश्वरी लीला ही थी, जिसे समझ पाना सामान्य मनुष्य के लिए असंभव है।

फिर भी लक्षणा मैं यही कहूंगा, कि कुछ समय के लिए मन में धीरज धारण कर शांत चित्त होकर चलो। क्योंकि तुम यह समझ लो कि हथेली की थोड़ी सी थीरकन हाथ में रखे पारे को चाह कर भी जिस तरह लुढ़कने से नहीं रोक सकती। ठीक उसी तरह मन में उठी थोड़ी सी भी हलचल हमारी खुद की और अस्थिरता के कारण उस आदि शक्तियों के दर्शन और कृपा से वंचित कर सकते हैं।

लक्षणा तुमने सही कहा कि संध्या के पश्चात उस मंदिर में हमारी उपस्थिति संभव नहीं है। और वाकई होना भी नहीं चाहिए। लेकिन ऐसा तब होता है जब हम दोनों में से कोई एक भी सामान्य मनुष्य हो तो। ना तो यह मैं एक सामान्य अश्व हूं, और ना ही तुम एक सामान्य मनुष्य।

हमारे पूर्व जन्म की शक्तियों ने हमें मनुष्य काया के बंधनों से मुक्त कर दिया है । और जब काया का बंधन समाप्त हो जाता था, माया का प्रभाव सूक्ष्म रह जाता है। ध्यान से देखो अभी बातें करते हुए ही हम मंदिर के अंतिम सीढ़ी तक आ चुके हैं। अब हमारे सामने वह तेजस्वी चाबी ही जिसके दर्शन और स्तुति के लिए हमें गंधर्व राज ने एक इशारा किया था।

आओ पहले प्रथम सीढ़ी को पार करे, कहते हुए कदंभ उस जलकुंड के सामने जा खड़ा हुआ। जहां बुलबुलों की आवाज पाताल लोक से पृथ्वी लोक तो गूंज रही थी। वहां खड़े हो उन दोनों ने उस चमत्कारिक मंत्रों का उच्चारण प्रारंभ किया, और देखते ही देखते कुछ ही पल में एक तेज आभा के साथ उस स्थान पर पंख लिए एक चाबी प्रकट हुई। जिसने कदंभ और लक्षणा को आशीर्वाद दे अपने ही अंदर समेट लिया, एक विशेष बुलबुले के अंदर....जो स्थित था उनके मुकुट में।

उन्हें आदेश दिया कि जब तक उन दोनों (लक्षणा और कदंभ) को ना कहा जाए, वह सिर्फ  शांतिपूर्वक सब कुछ देखते रहे। अभी उनका अस्तित्व समय और काल से परे हैं। आज वे जो कुछ भी देखेंगे वह सब सामान्य हो सकता है। लेकिन संपूर्ण ज्ञान के लिए उसे जानना भी जरूरी है, क्योंकि बिना ज्ञान के शक्ति प्राप्त होने पर उसका महत्व समझ में नहीं आता

क्रमशः.....

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1 Comments

Mohammed urooj khan

04-Nov-2023 12:32 PM

👍👍👍👍👍

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